राहुल का कथाकार मुखर होकर भी पात्रों, देशकाल और व्यक्तिगत संघर्षों के बीच यूँ सरलता से समाहित हो जाता है कि पाठकों को ये जानने के लिए अपने आपको खुद ही खंगालना पड़ता है कि आखिर वे किस पात्र के साथ खड़े हैं। भाषा की सरलता और प्रवाह, पात्रों से व्यक्तिगत सम्बन्ध बना देती है और लगने लगता है ऐसे किसी से हम मिले हैं या फिर कहीं हम ख़ुद ही तो एक पात्र नहीं हैं? एक अभिनेता के होने के कारण मेरा पहला ध्यान अभिनय पक्ष और कहानी के किरदारों पर जाता है। इस कसौटी पर भी यह संग्रह खरा उतरता है। इसे 'अद्भुत' कहे बिना मेरी व्यक्तिगत प्रशंसा अधूरी है। -कुमुद मिश्र, अभिनेता व कलाकार
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